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समावेशी विकास

                                  समावेशी विकास समावेशी विकास का मतलब वैसा विकास है जिसमें रोजगार के अवसर पैदा हों और जो गरीबी को कम करने में मदद करे। इसमें अवसर की समानता प्रदान करना और शिक्षा व कौशल विकास के द्वारा लोगों को सशक्त करना शामिल है अर्थात् समान अवसरों के साथ विकास करना ही समावेशी विकास है। दूसरे शब्दों में ऐसा विकास जो न केवल नए आर्थिक अवसरों को पैदा करे , बल्कि समाज के सभी वर्गो के लिए सृजित ऐसे अवसरों की समान पहुंच को सुनिश्चित भी करे हम उस विकास को समावेशी विकास कह सकते हैं।समावेशी विकास में जनसंख्या के सभी वर्गो के लिए बुनियादी सुविधाओं यानी आवास , भोजन , पेयजल , शिक्षा , कौशल , विकास , स्वास्थ्य के साथ - साथ एक गरिमामय जीवन जीने के लिए आजीविका के साधनों की सुपुर्दगी भी करना है , परन्तु ऐसा करते समय पर्यावरण संरक्षण पर भी हमें पूरी तरह ध्यान देना होगा , क्योंकि पर्यावरण की कीमत पर किया गया विकास न तो टिकाऊ होता है और न समावेशी ही I वस्तुपरक दृष्टि से समावेशी विकास उस स्थिति को इंगित करता है जहां सकल घरेलू उत्पाद की उच्च संवृद्धि दर प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्प

आज का नॉलेज

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                                     डिजिटल इंडिया   20 अगस्त 2016 को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की एक बैठक में महत्वाकांक्षी ‘ डिजिटल इंडिया ’ कार्यक्रम को मंजूरी दी गयी. सरकार ने कहा है कि यह कार्यक्रम भारत को डिजिटल सशक्त समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था में बदलने के लिए निर्धारित किया गया है. डिजिटल इंडिया की प्रकृति रूपांतरकारी है व इससे सुनिश्चित होगा कि सरकारी सेवाएं नागरिकों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से उपलब्ध हों. आज के नॉलेज में पेश है इसके विभिन्न पहलुओं की जानकारी.. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की बैठक में पारित डिजिटल इंडिया कार्यक्रम को समयबद्ध रूप से लागू करने पर जोर दिया जा रहा है. इस कार्यक्रम का मकसद भारत को डिजिटल रूप से एक सशक्त समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था में बदलना है.   यह 7 अगस्त , 2014 को डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के बारे में प्रधानमंत्री की बैठक के दौरान कार्यक्रम के डिजाइन पर लिये गये मुख्य निर्णयों और सभी मंत्रालयों के कामकाज के हर पहलू को छूने वाले इस व्यापक कार्यक्रम की जानकारी देने के बाद उठाया गया कदम है