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Economics made easy

Economics is all about demand and supply. If the two don't match together then problems arise. The slow down of the Indian economy nowadays is the result of the deficiency of demand in relation to supply. People don't have sufficient income to spend on the goods and services produced so far.This problem can only be solved by raising the level of income either by creating more employment or leaving sufficient income in the hands of people by ratonalising the tax structure or through the effective  use of monetary and fiscal policies.  The Keyne sian theory says that the level of income in the economy depends on effective demand which is determined by aggregate demand (AD) and aggregate supply(AS). The aggregate demand is composed of consumption demand and investment demand. The consumption demand itself depends on the income and marginal propensity to consume (mpc)which is the ratio of change in consumption to change in income.The investment demand depends on marginal efficien

भारत में गरीबी की समस्या: नई सोच की आवश्यकता

भारत में गरीबी की समस्या: नई सोच की आवश्यकता “ गरीबी बहुत-सी आर्थिक परिस्थितियों का परिणाम है इसलिए गरीबी की समस्या को हल करने के लिए स्वयं गरीबी की संकल्पना से परे जाना होगा I यह जानना काफी नहीं कि कितने लोग गरीब है , बल्कि यह जानना महत्वपूर्ण है कि गरीब लोग कितने गरीब है I भारत में गरीबी का जारी रहना एक बड़ी चुनौती है गरीबी का सम्बन्ध केवल आय या कैलोरी से जोड़कर करना सही नहीं होगा , बल्कि हमें यह देखना चाहिए कि लोगों कि बीमारियों से कहाँ तक रक्षा हो पाई है , उनके लिए रोटी , कपड़ा , मकान , शिक्षा , स्वास्थ्य , व रोजगार की सुविधाओं का विस्तार करना होगा. गरीबों को केवल सस्ती शिक्षा , सस्ता अनाज और सस्ती दवाईया , सस्ता आवास दे देने मात्र से उनकी गरीबी दूर नहीं होगी. जिस प्रकार हम गरीबी और गरीबी रेखा पर सोच-विचार करते है , ठीक उसी प्रकार अमीरी और अमीरी रेखा के निर्धारण पर भी सोचना होगा. गरीबों के जीवनस्तर को जिन्दा रहने लायक स्तर से ऊपर उठाना होगा. उन्हें केवल जीवनरेखा को पार करना ठीक वैसा ही होगा , जैसे गहरे पानी में डूबे हुए व्यक्ति को किनारे पर लाकर पटक देना. उसे इस स्थिति के पश्च

खाद्य प्रसंस्करण

खाद्य प्रसंस्करण     कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के बावजूद देश में एक ओर जहां किसानों को बेहतर उत्पादन होने पर भी फसल की कम कीमत मिलती है. वहीं कम उत्पादन होने पर घाटे का सामना करना पड़ता है. इसकी बड़ी वहज है कृषिजन्य खाद्य एवं अखाद्य उत्पादों के प्रसंस्करण की ओर अब भी बहुत अधिक ध्यान नहीं दिया जा रहा है जबकि लघु एवं कुटीर प्रसंस्करण उद्योग कृषि उत्पादों के मूल्य संवर्धन से बेहतर आय अर्जित कर सकते हैंI       भारत के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग क्षेत्र में प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादन और निर्यात की पर्याप्त संभावनाएं हैं. देश का खाद्य बाजार लगभग 10.1 लाख करोड़ रुपये का है , जिसमें खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का हिस्सा 53 फीसद अर्थात 5.3 लाख करोड़ रु पये का हैI    खाद्य प्रसंस्करण उद्योग से करोड़ों लोगों को प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से रोजगार मिलता है. 2014-15 तक देश के सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र का योगदान 6.5 प्रतिशत था जबकि अप्रैल , 2000 से जुलाई , 2013 के बीच इस क्षेत्र में 1.97 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आया थाI   खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के तहत क्षेत्र में विभिन्