खाद्य प्रसंस्करण
खाद्य प्रसंस्करण
कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के बावजूद देश में एक ओर जहां किसानों को बेहतर उत्पादन होने पर भी फसल की कम कीमत मिलती है. वहीं कम उत्पादन होने पर घाटे का सामना करना पड़ता है. इसकी बड़ी वहज है कृषिजन्य खाद्य एवं अखाद्य उत्पादों के प्रसंस्करण की ओर अब भी बहुत अधिक ध्यान नहीं दिया जा रहा है जबकि लघु एवं कुटीर प्रसंस्करण उद्योग कृषि उत्पादों के मूल्य संवर्धन से बेहतर आय अर्जित कर सकते हैंI
भारत
के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग क्षेत्र में प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादन और निर्यात की
पर्याप्त संभावनाएं हैं. देश का खाद्य बाजार लगभग 10.1 लाख करोड़ रुपये का है, जिसमें खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का
हिस्सा 53 फीसद अर्थात 5.3 लाख करोड़ रु पये का हैI
खाद्य प्रसंस्करण उद्योग से करोड़ों लोगों को
प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से रोजगार मिलता है. 2014-15 तक देश के सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी
में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र का योगदान 6.5 प्रतिशत था जबकि अप्रैल, 2000 से जुलाई, 2013 के बीच इस क्षेत्र में 1.97 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश
आया थाI
खाद्य
प्रसंस्करण उद्योग के तहत क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के उत्पाद निर्मिंत होते हैं
इसीलिए भारत में खाद्य प्रसंस्करण कंपनियों के लिए प्रचुर संभावना है. आज खाद्य
प्रसंस्करण उद्योग के रूप में विभिन्न उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ रही है. जिसका
कारण भारत के लोगों की प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि माना जा रहा हैI
फिलहाल देश में फल और सब्जियों के लगभग 2, दूध के 37, मीट और मुर्गी पालन के 1 तथा मत्स्य उत्पाद के 12 फीसद हिस्से का प्रसंस्करण किया जाता
है. इसकी तुलना विकसित देशों में प्रसंस्कृत किए जा रहे उत्पादन की 80 फीसद मात्रा से करें तो भारत में
खाद्य प्रसंस्करण व्यवसाय की अपार संभावनाओं का आभास होता हैI
सरकार
ने हाल में इस क्षेत्र में संयुक्त उद्यमों, विदेशी सहयोग और विदेशी प्रत्यक्ष
निवेश की अनुमति प्रदान की है. इसके विकास के लिए अनेक योजनाएं भी कार्यान्वित की
गई हैं. खाद्य पार्क,
पैकेजिंग केद्र और एकीकृत प्रशीतल
श्रृंखला सुविधाएं उल्लेखनीय प्रयास हैं. इस उद्योग में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के
लिए सौ फीसद तक निवेश की अनुमति प्रदान कर की गई हैI
हालांकि
मूलभूत संरचना और अनुसंधान एवं विकास में कम निवेश की चुनौती अब भी बनी हुई है
किन्तु, सरकार द्वारा कार्यान्वित निवेश की
विभिन्न योजनाओं के फलस्वरूप अनुमान है कि निवेश बढ़ने से इस उद्योग में वृद्धि
होगी. 2015 तक इस क्षेत्र में लगभग 1.1 लाख करोड़ रु पये के निवेश के अवसर
सृजित होने हैं और अनुमानत: 2015
तक इसका बाजार 310 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ जाएगाI
खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए कार्य योजना विजन 2015 को अंतिम रूप दिया गया हैI इसका उद्देश्य जल्दी खराब होने वाली खाद्य सामग्री के लिए प्रसंस्करण स्तर को 6 से 20 फीसद, मूल्यवर्धन स्तर को 20 से 35 तथा वैश्विक खाद्य व्यापार हिस्सेदारी को 1.6 से बढ़ाकर 3 फीसद करना हैI
फल व सब्जियों के प्रसंस्करण स्तर को इस साल 15 फीसद के स्तर तक पहुंचाने का लक्ष्य है. मंत्रिमंडल ने खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में, मंत्रियों के समूह (जीओएम) द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर कृषि व्यवसाय और दशर्न, रणनीति और कार्य योजना को बढ़ावा देने के लिए एकीकृत रणनीति को मंजूरी दी हैI
खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए कार्य योजना विजन 2015 को अंतिम रूप दिया गया हैI इसका उद्देश्य जल्दी खराब होने वाली खाद्य सामग्री के लिए प्रसंस्करण स्तर को 6 से 20 फीसद, मूल्यवर्धन स्तर को 20 से 35 तथा वैश्विक खाद्य व्यापार हिस्सेदारी को 1.6 से बढ़ाकर 3 फीसद करना हैI
फल व सब्जियों के प्रसंस्करण स्तर को इस साल 15 फीसद के स्तर तक पहुंचाने का लक्ष्य है. मंत्रिमंडल ने खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में, मंत्रियों के समूह (जीओएम) द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर कृषि व्यवसाय और दशर्न, रणनीति और कार्य योजना को बढ़ावा देने के लिए एकीकृत रणनीति को मंजूरी दी हैI
खाद्य प्रसंस्करण महत्वपूर्ण उद्योग है, क्योंकि यह प्रत्यक्ष तौर पर कृषि से
जुड़ा है. इसमें कुल जनसंख्या के 70
प्रतिशत भाग को रोजगार मिला है और
इसमें किसी प्रकार की छंटनी की भी गुंजाइश नहीं होती. लोगों की जीवनशैली में
परिवर्तन और अन्य कारणों से आज प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों की मांग बढ़ रही हैI
इसका प्रमाण यह है कि वैश्विक मंदी की स्थिति में भी यह क्षेत्र कम प्रभावित हुआ. भारत के दो तिहाई लोग कृषि और इससे जुड़ी गतिविधियों में रोजगार पा रहे हैं. कृषि व वानिकी और लकड़ी कटाई जैसे संबंधित क्षेत्रों में देश की जनसंख्या का बड़ा फीसद काम कर रहा हैI
भारत की कृषि के अनुकूल जलवायु और प्रचुर प्राकृतिक संपदा कृषि के मोर्चे पर बहुत अच्छा प्रदशर्न करने की पृष्ठभूमि बनाती हैं. आज नारियल, आम, केला, दूध एवं दुग्ध उत्पाद, काजू, दालें, अदरक, हल्दी और काली मिर्च का उत्पादन सबसे अधिक भारत में होता हैI
गेहूं, चावल, चीनी, कपास, फल व सब्जियों के उत्पादन में भारत का दूसरा नंबर है. लेकिन प्रमुख खाद्य उत्पादक होने के बावजूद विश्व खाद्य बाजार में भारत की हिस्सेदारी दो प्रतिशत से भी कम है. क्योंकि भारत में खाद्य प्रसंस्करण का स्तर छह प्रतिशत के अत्यंत निचले स्तर पर है, जबकि विकसित देशों में यह 60.80 प्रतिशत है और अन्य एशियाई एवं लैटिन अमेरिका के विकासशील देशों में 30 प्रतिशत से ऊपर हैI
देखा जाए तो उचित प्रसंस्करण के अभाव में देश में खाद्य उत्पादों का अपव्यय ज्यादा होता है और काम की चीज कम निकल पाती है. प्रति वर्ष हजारों टन अनाज की बर्बादी इसी का प्रमाण हैI
इसका प्रमाण यह है कि वैश्विक मंदी की स्थिति में भी यह क्षेत्र कम प्रभावित हुआ. भारत के दो तिहाई लोग कृषि और इससे जुड़ी गतिविधियों में रोजगार पा रहे हैं. कृषि व वानिकी और लकड़ी कटाई जैसे संबंधित क्षेत्रों में देश की जनसंख्या का बड़ा फीसद काम कर रहा हैI
भारत की कृषि के अनुकूल जलवायु और प्रचुर प्राकृतिक संपदा कृषि के मोर्चे पर बहुत अच्छा प्रदशर्न करने की पृष्ठभूमि बनाती हैं. आज नारियल, आम, केला, दूध एवं दुग्ध उत्पाद, काजू, दालें, अदरक, हल्दी और काली मिर्च का उत्पादन सबसे अधिक भारत में होता हैI
गेहूं, चावल, चीनी, कपास, फल व सब्जियों के उत्पादन में भारत का दूसरा नंबर है. लेकिन प्रमुख खाद्य उत्पादक होने के बावजूद विश्व खाद्य बाजार में भारत की हिस्सेदारी दो प्रतिशत से भी कम है. क्योंकि भारत में खाद्य प्रसंस्करण का स्तर छह प्रतिशत के अत्यंत निचले स्तर पर है, जबकि विकसित देशों में यह 60.80 प्रतिशत है और अन्य एशियाई एवं लैटिन अमेरिका के विकासशील देशों में 30 प्रतिशत से ऊपर हैI
देखा जाए तो उचित प्रसंस्करण के अभाव में देश में खाद्य उत्पादों का अपव्यय ज्यादा होता है और काम की चीज कम निकल पाती है. प्रति वर्ष हजारों टन अनाज की बर्बादी इसी का प्रमाण हैI
गौरतलब
है कि जुलाई, 1988 में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को
प्रोत्साहित करने के लिए खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय (एमएफपीआई) स्थापित
किया गया था. इस लिहाज से समग्र राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और उद्देश्यों के भीतर
खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के लिए नीतियों व योजनाओं के निर्माण और कार्यान्वयन के
लिए मंत्रालय जवाबदेह है और उत्पादकों के प्रशिक्षण की प्रक्रिया के सरलीकरण और
युक्तिसंगत बनाए जाने की दिशा में बहुत कुछ किया जाना बाकी है. कृषि एवं
वनोत्पादों के गुणवत्तापूर्ण मूल्य संवर्धन की विधियों एवं इसके महत्व का ज्ञान न
होने से ग्रामीणों को कृषिजन्य उत्पादों का पर्याप्त लाभ नहीं मिल पाता हैI
पूर्व
से लेकर पश्चिम और उत्तर से लेकर दक्षिण तक विविध प्रकार के कृषि उत्पाद ग्रामीण
आत्मनिर्भरता के कारक हैं. कश्मीर के मेवे, हिमाचल के सेब व मशरूम, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश का गेहूं व चावल, मध्य प्रदेश का सोयाबीन, पश्चिमी उत्तर प्रदेश व महाराष्ट्र
का गन्ना, दक्षिण भारत के मसाले एवं नारियल, पश्चिम बंगाल का जूट, बिहार की लीची व मखाने, बस्तर की इमली, चिरौंजी व तेंदू पत्ता आदि उत्पाद
स्थानीय ग्रामीणों की आर्थिक आत्मनिर्भरता के मामले में महत्वपूर्ण कारक साबित हो
सकते हैंI
चाय, कॉफी, मसाले व कपास जैसी फसलों के मामले में भारत लाभ की स्थिति में नजर आता है. कपास के उत्पादन के मामले में भारत का विश्व में दूसरा स्थान हैI
चाय, कॉफी, मसाले व कपास जैसी फसलों के मामले में भारत लाभ की स्थिति में नजर आता है. कपास के उत्पादन के मामले में भारत का विश्व में दूसरा स्थान हैI
इस लिहाज कई मामलों में खाद्य प्रसंस्करण की
अपार संभावनाएं हैं लेकिन गुणवत्ता निर्धारण बड़ी समस्या है. सार्वजनिक और निजी
दोनों क्षेत्रों में विश्वस्तरीय खाद्य जांच प्रयोगशालाएं बननी चाहिए. कर ढांचे
में भी सुधार जरूरी हैI
यद्यपि प्राथमिक कृषि जिंसों को करों से छूट प्राप्त है, लेकिन प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों पर कई तरह की लेवी लगी है इसलिए कर ढांचे को सरल और युक्तिसंगत बनाने की जरूरत है. खाद्य प्रसंस्करण उद्योग बंटा हुआ है और ज्यादातर हितधारक छोटे व असंगठित हैंI
सरकारों को बैंकरों, वित्तीय संस्थानों व तकनीकी एवं प्रबंधन संस्थानों का सहयोग प्राप्त करने में अहम भूमिका निभानी होगीI
छोटे एवं मंझोले उद्यमों की पहचान की जानी चाहिए, ताकि नई प्रौद्योगिकी, पैकेजिंग के नए तरीके और विपणन के लिए समुचित सहयोग के जरिए इनका उन्नयन किया जा सकेI
यद्यपि प्राथमिक कृषि जिंसों को करों से छूट प्राप्त है, लेकिन प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों पर कई तरह की लेवी लगी है इसलिए कर ढांचे को सरल और युक्तिसंगत बनाने की जरूरत है. खाद्य प्रसंस्करण उद्योग बंटा हुआ है और ज्यादातर हितधारक छोटे व असंगठित हैंI
सरकारों को बैंकरों, वित्तीय संस्थानों व तकनीकी एवं प्रबंधन संस्थानों का सहयोग प्राप्त करने में अहम भूमिका निभानी होगीI
छोटे एवं मंझोले उद्यमों की पहचान की जानी चाहिए, ताकि नई प्रौद्योगिकी, पैकेजिंग के नए तरीके और विपणन के लिए समुचित सहयोग के जरिए इनका उन्नयन किया जा सकेI
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