न्यूनतम समर्थन मूल्य
न्यूनतम समर्थन मूल्य
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) वह मूल्य है जिस पर सरकार किसानों से फसल खरीदती है। एमएसपी (MSP)
किसानों
को उनकी फसलों का न्यूनतम मूल्य देने के लिए अपनाया गया है ताकि किसानो को फसल
बिक्री के समय होने वाले जोखिमों को
कम
किया जा सके। एमएसपी को किसानों की उत्पादन लागत के साथ- साथ उनकी आजीविका के लिए
भी लाभकारी माना जाता है।
भारत में न्यूनतम
समर्थन मूल्य (MSP) आधारित खरीद प्रणाली का
उद्देश्य फसलों को प्रभावित करने वाले अनियंत्रित कारकों जैसे मानसून, बाजार एकीकरण की कमी, सूचनाओं की कमी और भारतीय कृषि
को प्रभावित करने वाली अन्य बाजार संबंधित कमियों के कारण होने वाली कीमतों में
उतार-चढ़ाव से बचाना है। केंद्र सरकार के कृषि लागत और मूल्य
आयोग द्वारा पहचानी गई प्रमुख
समस्याओं की उपयुक्त जांच करने के बाद भारत में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) निर्धारित की जाती है।
एमएसपी के अंतर्गत, कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) 24 विशिष्ट फसलों के लिए कीमतों और गन्ने के लिए
उचित और लाभकारी मूल्य (Fair and Remunerative Price) की
सिफारिश करता है। CACP कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय का एक विभाग है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गणना
Ø
CACP एमएसपी की
सिफारिश करते समय विभिन्न कारकों को ध्यान में रखते है, जैसे फसल की लागत, आपूर्ति और मांग
की स्थिति, बाजार मूल्य रुझान (घरेलू और वैश्विक दोनों), और उपभोक्ताओं और
पर्यावरण पर प्रभाव।
Ø CACP तीन प्रकार की
उत्पादन लागतों पर विचार करता है: A2, A2+FL, और C2।
1.
A2 किसानों द्वारा
की गई प्रत्यक्ष लागत को कवर करता है, जिसमें बीज, उर्वरक, कीटनाशक, श्रम आदि शामिल
है।
2.
A2+FL में A2 लागत और अवैतनिक पारिवारिक श्रम का मूल्य शामिल
है।
3.
C2 एक अधिक व्यापक
लागत है जिसमें A2 +FL के साथ स्वामित्व
वाली भूमि और पूंजीगत परिसंपत्तियों पर किराये और शेष ब्याजों को भी शामिल किया
जाता है।
Ø न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) स्तर और अन्य
सिफारिशों पर अंतिम निर्णय केंद्र सरकार की आर्थिक मामलों की
कैबिनेट समिति (CEA) द्वारा किया जाता
है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से किसानों को लाभ
·
आय सुरक्षा: एमएसपी किसानों
को उनकी फसलों के लिए न्यूनतम मूल्य की गारंटी देता है, स्थिर आय
सुनिश्चित करता है और उन्हें बाजार मूल्य में उतार-चढ़ाव से सुरक्षा प्रदान करता
है।
·
मूल्य स्थिरता: एमएसपी कृषि
उत्पादों की कीमतों को स्थिर करने, अत्यधिक
उतार-चढ़ाव को रोकने और उपभोक्ताओं के लिए सस्ती कीमतें सुनिश्चित करने में मदद
करता है।
·
उत्पादन- वृद्धि
को प्रोत्साहन: न्यूनतम समर्थन
मूल्य (MSP) किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य प्रदान करके कृषि
उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है।
·
खाद्य सुरक्षा: एमएसपी किसानों
को मुख्य फसलों को उगाने के लिए प्रोत्साहित करता हैं, जिससे भारत की
आयात पर निर्भरता कम होगीं और घरेलू खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा।
न्यूनतम समर्थन
मूल्य (MSP) व्यवस्था से जुड़े मुद्दे
·
क्रय-फोकस: वर्तमान एमएसपी
व्यवस्था का उद्देश्य मुख्य रूप से घरेलू बाजार की कीमतों के साथ संतुलन रखने के
स्थान पर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) की आवश्यकताओं को
पूरा करना है। यह वास्तविक एमएसपी की तुलना में खरीद मूल्य की तरह अधिक कार्य करता
है।
·
गेहूं और धान का
प्रभुत्व: MSP का अधिक फोकस गेहूं और चावल की फसल पर होने से, इन फसलों का
अत्यधिक उत्पादन होता है, जिससे किसान उन
अन्य फसलों और बागवानी उत्पादों की खेती करने से हतोत्साहित हो जाते हैं जिनकी
मांग अधिक होती है।
·
अप्रभावी कार्यान्वयन:
शांता कुमार समिति की 2015 की रिपोर्ट के
अनुसार, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से केवल 6% किसानों को लाभ
हुआ है। इसका तात्पर्य यह है कि देश के 94% किसानों को
एमएसपी का अपेक्षित लाभ नहीं मिलता है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को कानूनी बनाने की मांग
·
किसानों को कम
कीमतें मिलती हैं: भारत में अधिकांश
किसानों को प्राय: उनकी फसलों के लिए आधिकारिक तौर पर घोषित एमएसपी से कम कीमतें
मिलती हैं। चूंकि एमएसपी के पास कानूनी समर्थन का अभाव है, इसलिए किसान इन
कीमतों को अधिकार के रूप में लागू नहीं कर सकते हैं।
·
सीमित सरकारी
खरीद: एमएसपी पर फसलों की सरकारी खरीद सीमित है। केवल गेहूं
और चावल की लगभग एक-तिहाई फसलें और चयनित दालों और तिलहनों का 10%-20% ही एमएसपी दरों
पर खरीदा जाता है। अधिकांश किसानों को यह लाभ नहीं मिल पाता।
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को कानूनी रूप देने में चुनौतियाँ
·
वैधानिक एमएसपी
की अस्थिरता: एमएसपी को वैध
बनाना अधिक चुनौतीपूर्ण है क्योंकि इससे निजी व्यापारी पूर्व निर्धारित मूल्य पर
अतिरिक्त उत्पादन को खरीदनें और बाजार कीमतों में गिरावट होने के भय से,MSP आधारित फसल को
खरीदनें से अस्वीकार कर सकते है। इसके परिणामस्वरूप सरकार अधिकांश फसलों की
प्राथमिक खरीदार बन जाएगी, जो एक स्थायी
समाधान नहीं है।
·
भ्रष्टाचार और
रिसाव की संभावना: एमएसपी को वैध
बनाने से भ्रष्टाचार और गोदामों, राशन की दुकानों
से या परिवहन के दौरान फसलों के अनुचित वितरण या
विचलन का जोखिम बढ़ सकता है।
·
निपटान चुनौतियाँ: सार्वजनिक वितरण
प्रणाली(PDS) के माध्यम से
अनाज और दालों की बिक्री करना अपेक्षाकृत सरल है, जबकि नाइजर बीज, तिल या कुसुम
जैसी फसलों की बिक्री करना अधिक जटिल हो जाता है।
·
मुद्रास्फीति
प्रभाव: एमएसपी के तहत उच्च खरीद लागत से खाद्यान्नों की
कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे
मुद्रास्फीति बढ़ेगी और अंततः गरीबों पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
·
कृषि निर्यात पर
प्रभाव: यदि एमएसपी की कीमतें प्रचलित अंतरराष्ट्रीय दरों से
अधिक हो जाती हैं, तो इससे भारत के
कृषि निर्यात पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जो वर्तमान में
कुल वस्तु निर्यात में 11% का योगदान देता
है।
सुझाव
·
कृषि फसलों में
विविधता: मत्स्य पालन एवं फलों और सब्जियों सहित पशुपालन में
निवेश पर अधिक ध्यान देना चाहिए, जो अधिक पौष्टिक हैं
और उच्च आय सृजन की क्षमता रखते हैं।
·
निजी क्षेत्र की
भागीदारी को प्रोत्साहन: सरकार को क्लस्टर
दृष्टिकोण को अपनाते हुए कृषि-क्षेत्र में कुशल मूल्य श्रृंखला विकसित करने के लिए
निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करना चाहिए।
·
वास्तविक एमएसपी
हस्तक्षेप (True MSP Intervention): एक वास्तविक
एमएसपी के साथ सरकारी हस्तक्षेप तभी होना चाहिए जब बाजार की कीमतें पूर्वनिर्धारित
स्तर से नीचे गिरती हैं, विशेषकर
अंतरराष्ट्रीय कारकों के कारण अतिरिक्त उत्पादन, अधिक आपूर्ति या
मूल्य गिरावट के मामलों में।
·
वांछनीय फसलों को
प्रोत्साहित करना (Incentivize Desirable Crops): न्यूनतम समर्थन
मूल्य (MSP) पोषण सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण फसलों जैसे मोटे अनाज, दालें और खाद्य
तेल के लिए प्रोत्साहन मूल्य के रूप में भी काम कर सकता है जिनके लिए भारत आयात पर
निर्भर है।
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