कृषि सहायिकी (Farm Subsidy)




                     कृषि सहायिकी (Farm Subsidy)

कृषि क्षेत्र में किसानों को प्रदान की जाने वाली सहायिकी (Subsidy) सरकार के बजट का अभिन्न हिस्सा होती है। सब्सिडी को प्रदान करने का उद्देश्य कृषि को लाभदायक पेशे में परिवर्तित करना है ताकि किसानों को अधिकाधिक रूप में लाभन्वित किया जा सके। कृषि क्षेत्र में प्रदान की जाने वाली सब्सिडी को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कृषि सब्सिडी में बाँटा जाता है। प्रत्यक्ष सब्सिडी के तहत किसानों को नकद सहायता प्रदान की जाती है ताकि उनके उत्पादों को वैश्विक बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धात्मक बनाया जा सके। प्रत्यक्ष कृषि सब्सिडी न केवल किसानों की क्रय शक्ति क्षमता में वृद्धि करती है बल्कि यह ग्रामीण गरीबों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने में भी सहायक होती है। प्रत्यक्ष कृषि सब्सिडी सार्वजनिक निधि के दुरूपयोग को रोकने में भी सहायक होती है क्योंकि यह लाभान्वितों की समुचित पहचान पर आधारित होती है।
प्रत्यक्ष कृषि सब्सिडी के ही समान अप्रत्यक्ष कृषि सब्सिडी का भी किसानों को सहायता पहुँचाने में महत्वपूर्ण योगदान है। अप्रत्यक्ष कृषि सब्सिडी का भी किसानों को सहायता पहुँचाने में महत्वपूर्ण योगदान है। अप्रत्यक्ष कृषि सब्सिडी के तहत किसानों को प्रदान किए गए ऋण में छूट, सिंचाई एवं बिजली बिलों में छूट, उर्वरक, बीज और कीटनाशकों में छूट को शामिल किया जाता है। कृषि से संबंधित शोधों में किए गए निवेश, पर्यावरणीय सहायता और किसानों के प्रशिक्षण में किए गए निवेश इत्यादि को भी अप्रत्यक्ष कृषि सहायता के अंतर्गत शामिल किया जाता है। अप्रत्यक्ष कृषि सब्सिडी का उद्देश्य भी वैश्विक बाजार में कृषि उत्पादों को अधिक प्रतिस्पर्धात्मक बनाना है। एक उदाहरण से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कृषि सब्सिडी को आसानी से समझा जा सकता है। उर्वरकों की कीमत में प्रदान की गई छूट अप्रत्यक्ष सब्सिडी के तहत आती है जबकि जब सरकार उत्पादन के बाद नकदी सहायता प्रदान करती है तो उसे प्रत्यक्ष कृषि सब्सिडी के रूप में जाना जाता है।
वर्तमान में कृषि क्षेत्र को प्रदान की जा रही सब्सिडी बहस का मुद्दा बन गई है। इस बात से तो सभी सहमत हैं कि छोटे एवं गरीब किसानों को नवीन प्रौद्योगिकी तथा उन्नत किस्म के बीजों एवं उर्वरकों को अपनाने के लिए सब्सिडी दिया जाना जरूरी था क्योंकि किसान प्रायः नई प्रौद्योगिकी को जोखिम पूर्ण समझते हैं। किंतु कुछ अर्थशास्त्री किसानों को प्रदान की जाने वाली सब्सिडी को जारी रखना गलत मानते हैं। उनका मानना है कि चूंकि एक बार सहायिकी दिए जाने से प्रौद्योगिकी का लाभ किसानों को मिल चुका है अतः सहायिकी को धीरे-धीरे समाप्त कर दिया जाना चाहिए। यही नहीं यद्यपि सहायिकी का उद्देश्य किसानों को लाभन्वित करना है किंतु उर्वरक सब्सिडी का लाभ बड़ी मात्रा में प्रायः उर्वरक उद्योग तथा अधिक समृद्ध क्षेत्र के किसानों को ही पहुँचता है इससे लक्षित समूह को लाभ भी नहीं पहुँचता है तथा सरकारी कोष पर अनावश्यक बोझ भी पड़ता है। इसलिए कृषि सब्सिडी को समाप्त कर दिया जाना चाहिए।
वहीं दूसरी ओर कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि कृषि सब्सिडी को जारी रखा जाना चाहिए क्योंकि भारत में कृषि एक जोखिम भरा व्यवसाय है। अधिकांश किसान गरीब हैं अतः सब्सिडी को समाप्त किए जाने से वे अपेक्षित आगतों का प्रयोग नहीं कर पाएंगे। सब्सिडी समाप्त करने से गरीब एवं अमीर किसानों के बीच असमानता काफी बढ़ेगी तथा समता के लक्ष्य का उल्लंघन होगा। उपर्युक्त दोनों प्रकार के मतों का समुचित विश्लेषण करने के बाद प्रतीत होता है कि सही नीति सहायिकी को समाप्त करना नहीं बल्कि ऐसे कदम उठाना होगा जिनसे सब्सिडी का लाभ सिर्फ निर्धन किसानों को ही प्राप्त हो।
इस प्रकार, प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कृषि सब्सिडी किसानों के लिए बहुत सहायक है। अतः इन्हें समाप्त करना सही कदम नहीं होगा बल्कि इन्हे तर्कसंगत बनाकर ऐसे कदम उठाने होंगे जिनसे केवल छोटे एवं गरीब किसानों को ही इनका लाभ प्राप्त हो सके।


Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

आरक्षण : देश के लिए वरदान या अभिशाप

न्यूनतम समर्थन मूल्य