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भारत में गरीबी की समस्या: नई सोच की आवश्यकता

भारत में गरीबी की समस्या: नई सोच की आवश्यकता “ गरीबी बहुत-सी आर्थिक परिस्थितियों का परिणाम है इसलिए गरीबी की समस्या को हल करने के लिए स्वयं गरीबी की संकल्पना से परे जाना होगा I यह जानना काफी नहीं कि कितने लोग गरीब है , बल्कि यह जानना महत्वपूर्ण है कि गरीब लोग कितने गरीब है I भारत में गरीबी का जारी रहना एक बड़ी चुनौती है गरीबी का सम्बन्ध केवल आय या कैलोरी से जोड़कर करना सही नहीं होगा , बल्कि हमें यह देखना चाहिए कि लोगों कि बीमारियों से कहाँ तक रक्षा हो पाई है , उनके लिए रोटी , कपड़ा , मकान , शिक्षा , स्वास्थ्य , व रोजगार की सुविधाओं का विस्तार करना होगा. गरीबों को केवल सस्ती शिक्षा , सस्ता अनाज और सस्ती दवाईया , सस्ता आवास दे देने मात्र से उनकी गरीबी दूर नहीं होगी. जिस प्रकार हम गरीबी और गरीबी रेखा पर सोच-विचार करते है , ठीक उसी प्रकार अमीरी और अमीरी रेखा के निर्धारण पर भी सोचना होगा. गरीबों के जीवनस्तर को जिन्दा रहने लायक स्तर से ऊपर उठाना होगा. उन्हें केवल जीवनरेखा को पार करना ठीक वैसा ही होगा , जैसे गहरे पानी में डूबे हुए व्यक्ति को किनारे पर लाकर पटक देना. उसे इस स्थिति के पश्च

खाद्य प्रसंस्करण

खाद्य प्रसंस्करण     कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के बावजूद देश में एक ओर जहां किसानों को बेहतर उत्पादन होने पर भी फसल की कम कीमत मिलती है. वहीं कम उत्पादन होने पर घाटे का सामना करना पड़ता है. इसकी बड़ी वहज है कृषिजन्य खाद्य एवं अखाद्य उत्पादों के प्रसंस्करण की ओर अब भी बहुत अधिक ध्यान नहीं दिया जा रहा है जबकि लघु एवं कुटीर प्रसंस्करण उद्योग कृषि उत्पादों के मूल्य संवर्धन से बेहतर आय अर्जित कर सकते हैंI       भारत के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग क्षेत्र में प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादन और निर्यात की पर्याप्त संभावनाएं हैं. देश का खाद्य बाजार लगभग 10.1 लाख करोड़ रुपये का है , जिसमें खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का हिस्सा 53 फीसद अर्थात 5.3 लाख करोड़ रु पये का हैI    खाद्य प्रसंस्करण उद्योग से करोड़ों लोगों को प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से रोजगार मिलता है. 2014-15 तक देश के सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र का योगदान 6.5 प्रतिशत था जबकि अप्रैल , 2000 से जुलाई , 2013 के बीच इस क्षेत्र में 1.97 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आया थाI   खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के तहत क्षेत्र में विभिन्

सुस्त अर्थव्यवस्था

सुस्त अर्थव्यवस्था इसी सप्ताह भारत सरकार ने जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद के नए आंकड़े जारी किए और इन आंकड़ों ने इस बात की पुष्टी कर दी है कि भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार ख़राब दौर से गुज़र रही है. मौजूदा तिमाही में जीडीपी 4.5 फ़ीसद पर पहुंच गई जो पिछले छह साल में सबसे निचले स्तर पर है. पिछली तिमाही की भारत की जीडीपी 5 फ़ीसदी रही थी. इस साल जुलाई में बजट पेश होने के बाद से सरकार ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कई कदम उठाए हैं. लेकिन अर्थव्यवस्था से जुड़े आंकड़ें देखने पर सवाल उठता है कि क्या सरकार के उठाए क़दम कारगर साबित हो रहे हैं? भारतीय रिज़र्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष के लिए अनुमानित सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की वृद्धि दर में एक बार फिर कटौती कर दी है. केंद्रीय बैंक ने गुरुवार को घोषित अपनी मुद्रा नीति में वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए जीडीपी विकास दर का अनुमान 6.1प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया है.इससे पहले सरकारी एजेंसी सेंट्रल स्टैटिस्टिकल ऑफ़िस (सीएसओ) ने भी बीते दिनों इस साल की दूसरी छमाही के लिए जीडीपी की वृद्धि दर 4.5 प्रतिशत बताई थी. अब आरबीआई ने इसका अनु

Nature, Scope,and Importance of Business Economics

                  Business economics Meaning and definition: Business Economics is the application of economic theory and methodology to business. Business involves decision-making. Decision making means the process of selecting one out of two or more alternative courses of action. The question of choice arises because the basic resources such as capital, land, labour and management are limited and can be employed in alternative uses. The decision-making function thus becomes one of making choice and taking decisions that will provide the most efficient means of attaining a desired end, say, profit maximization. According to Mc Nair and Meriam, “Business economic consists of the use of economic modes of thought to analyse business situations.”   Siegel man has defined business economic as “the integration of economic theory with business practice for the purpose of facilitating decision-making and forward planning by management.”   We may, therefore, define business econom