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सुस्त अर्थव्यवस्था

सुस्त अर्थव्यवस्था इसी सप्ताह भारत सरकार ने जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद के नए आंकड़े जारी किए और इन आंकड़ों ने इस बात की पुष्टी कर दी है कि भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार ख़राब दौर से गुज़र रही है. मौजूदा तिमाही में जीडीपी 4.5 फ़ीसद पर पहुंच गई जो पिछले छह साल में सबसे निचले स्तर पर है. पिछली तिमाही की भारत की जीडीपी 5 फ़ीसदी रही थी. इस साल जुलाई में बजट पेश होने के बाद से सरकार ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कई कदम उठाए हैं. लेकिन अर्थव्यवस्था से जुड़े आंकड़ें देखने पर सवाल उठता है कि क्या सरकार के उठाए क़दम कारगर साबित हो रहे हैं? भारतीय रिज़र्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष के लिए अनुमानित सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की वृद्धि दर में एक बार फिर कटौती कर दी है. केंद्रीय बैंक ने गुरुवार को घोषित अपनी मुद्रा नीति में वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए जीडीपी विकास दर का अनुमान 6.1प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया है.इससे पहले सरकारी एजेंसी सेंट्रल स्टैटिस्टिकल ऑफ़िस (सीएसओ) ने भी बीते दिनों इस साल की दूसरी छमाही के लिए जीडीपी की वृद्धि दर 4.5 प्रतिशत बताई थी. अब आरबीआई ने इसका अनु

Nature, Scope,and Importance of Business Economics

                  Business economics Meaning and definition: Business Economics is the application of economic theory and methodology to business. Business involves decision-making. Decision making means the process of selecting one out of two or more alternative courses of action. The question of choice arises because the basic resources such as capital, land, labour and management are limited and can be employed in alternative uses. The decision-making function thus becomes one of making choice and taking decisions that will provide the most efficient means of attaining a desired end, say, profit maximization. According to Mc Nair and Meriam, “Business economic consists of the use of economic modes of thought to analyse business situations.”   Siegel man has defined business economic as “the integration of economic theory with business practice for the purpose of facilitating decision-making and forward planning by management.”   We may, therefore, define business econom

Influence of individual variable on personality . Perception , learning , Attitude,and their applications

Perception Perception in marketing is described as a process by which a consumer identifies, organizes, and interprets information to create meaning. Perception can have various meanings but in marketing, it is often described as a process by which a consumer identifies, organizes, and interprets information to create meaning. A consumer will selectively perceive what they will ultimately classify as their needs and wants. Perception is a psychological variable involved in the purchase decision process that is known to influence consumer behavior. Other variables included in this consumer process include: motivation, learning, attitude, personality, and lifestyle. All of these concepts are crucial in interpreting the consumer buying process and can also help guide marketing efforts. Selective Perception is the process by which individuals perceive what they want to in media messages and disregard the rest. Learning Learning in marketing is known as a psychological variab

भारत में भूमि सुधार

भारत में भूमि सुधार कृषि कार्यों में भूमि सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है। भूमि के पट्टे का आकार, वितरण तथा स्वामित्व, कृषक की सामाजिक¬आर्थिक स्थिति का निर्धारण करता है। ये सभी कारक, भारत के कृषि की संस्थागत संरचना के महत्त्वपूर्ण भाग हैं। कृषि के संस्थागत संरचना, कृषि उत्पादकता को प्रभावित करती है। भारत में भूमि का स्वामित्व व नियन्त्राण मुट्ठी भर लोगों के हाथ में था जिनका उद्देश्य किराऐदारों से ज्यादा किराया वसूल करना था। जिसके परिणामस्वरूप भारत में कृषि उत्पादकता का लगातार ह्रास हुआ तथा किरायेदारों के शोषण की वजह से उनकी सामाजिक व आर्थिक स्थिति भी लगातार खराब होती गई। भारत में भूमि सुधार, कृषि उत्पादकता बढ़ाने तथा किरायेदारों को शोषण से मुक्त करने के लिए किऐ गये थे। भूमि सुधार का औचित्य भारत में जोत का आकार छोटा है तथा साथ ही साथ बिखरा हुआ है। जो कृषि उत्पादन के लिए अलाभकारी है। भारत में भूमि वितरण में भी बहुत असमानता देखने को मिलती है। भारत में भूमि का ज्यादातर भाग कुछ लोगों के स्वामित्व है तथा एक छोटा भाग ही बहुत बड़ी जनसंख्य

Gig Economy

Gig Economy A gig economy is a free market system in which temporary positions are common and organizations contract with independent workers for short-term engagements. In a gig economy, temporary, flexible jobs are commonplace and companies tend toward hiring   independent contractors  and  freelancers  instead of full-time employees. A gig economy undermines the traditio nal economy of full-time workers who rarely change positions and instead focus on a lifetime career. The term "gig" is a slang word meaning "a job for a specified period of time" and is typically used in referring to musicians. Examples of gig employees in the workforce could include freelancers, independent contractors, project-based workers and temporary or part-time hires. Due to the large numbers of people willing to work part-time or temporary positions, the result of a gig economy is cheaper, more efficient services, such as Uber or Airbnb, for those willing to use them. Those who d

The Law of Demand

                                                          THE   LAW   OF   DEMAND The law of demand states that the demand for a commodity increases when its price decreases and it falls when its price rises, other things remaining constant. This is an empirical law, i.e., this law is based on observed facts and can be verified with new empirical data. As the law reveals, there is an inverse relationship between the price and quantity demanded. The law holds under the condition that “other things remain constant”.  “Other  things” include other determinants of demand, viz., consumers’ income, price of the substitutes and complements, taste and preferences of the consumer, etc. These factors remain constant only in the short run. In the long run they tend to change. The law of demand, therefore, hold only in the short run. The law of demand can be presented through a demand schedule. Demand Schedule is a series of prices placed in descending (or ascending) order and the cor

आरक्षण : देश के लिए वरदान या अभिशाप

आरक्षण : देश के लिए वरदान या अभिशाप आरक्षण उस प्रक्रिया का नाम है जिसमे भारत की सरकार द्वारा सरकारी संस्थानोँ मेँ कुछ पिछड़ी जातियो के लिए सीटेँ रोक ली जाती है।अर्थात उस स्थान पर केवल एक विशेष जाति का व्यक्ति ही काम कर सकता है।यह विशेष जातियाँ वह वर्ग है जिन्हे प्राचीन भारत मेँ निचली जाती का दर्जा दिया जाता था , और इन लोगो को उच्च वर्ग के नीचे उनके आदेशो पर ही जीवन बसर करना पड़ता था। जिस वजह से वे कभी अपना व अपने परिवार का उद्धार नहीँ कर पाते थे। भारत मेँ आरक्षण की शुरुआत ब्रिटिश राज मेँ ही कर दी गई थी। 1882 में हंटर कमीशन से शुरू हुई इस आरक्षण प्रणाली का 1932 में अंग्रेजों ने अपनी सत्ता का प्रयोग करते हुए एक सांप्रदायिक बंटवारे के तहत दलितों और अन्य धर्मों को बांटने के लिए किया था। महात्मा गांधी ने इसकी कड़ी मुखालफत की , लेकिन अंतत: वह इस मुद्दे पर अंबेडकर के साथ समझौते के लिए तैयार हो गए। आरक्षण की लड़ाई में संविधान सभा में एक वोट की कमी से आरक्षण प्रस्ताव पारित नही होने पर डॉ. अम्बेडकर के सामने SC/ST को आरक्षण देने संबंधी गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई थी , लेकिन आंबेडकर ने अपनी