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भारत में भूमि सुधार

भारत में भूमि सुधार कृषि कार्यों में भूमि सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है। भूमि के पट्टे का आकार, वितरण तथा स्वामित्व, कृषक की सामाजिक¬आर्थिक स्थिति का निर्धारण करता है। ये सभी कारक, भारत के कृषि की संस्थागत संरचना के महत्त्वपूर्ण भाग हैं। कृषि के संस्थागत संरचना, कृषि उत्पादकता को प्रभावित करती है। भारत में भूमि का स्वामित्व व नियन्त्राण मुट्ठी भर लोगों के हाथ में था जिनका उद्देश्य किराऐदारों से ज्यादा किराया वसूल करना था। जिसके परिणामस्वरूप भारत में कृषि उत्पादकता का लगातार ह्रास हुआ तथा किरायेदारों के शोषण की वजह से उनकी सामाजिक व आर्थिक स्थिति भी लगातार खराब होती गई। भारत में भूमि सुधार, कृषि उत्पादकता बढ़ाने तथा किरायेदारों को शोषण से मुक्त करने के लिए किऐ गये थे। भूमि सुधार का औचित्य भारत में जोत का आकार छोटा है तथा साथ ही साथ बिखरा हुआ है। जो कृषि उत्पादन के लिए अलाभकारी है। भारत में भूमि वितरण में भी बहुत असमानता देखने को मिलती है। भारत में भूमि का ज्यादातर भाग कुछ लोगों के स्वामित्व है तथा एक छोटा भाग ही बहुत बड़ी जनसंख्य

Gig Economy

Gig Economy A gig economy is a free market system in which temporary positions are common and organizations contract with independent workers for short-term engagements. In a gig economy, temporary, flexible jobs are commonplace and companies tend toward hiring   independent contractors  and  freelancers  instead of full-time employees. A gig economy undermines the traditio nal economy of full-time workers who rarely change positions and instead focus on a lifetime career. The term "gig" is a slang word meaning "a job for a specified period of time" and is typically used in referring to musicians. Examples of gig employees in the workforce could include freelancers, independent contractors, project-based workers and temporary or part-time hires. Due to the large numbers of people willing to work part-time or temporary positions, the result of a gig economy is cheaper, more efficient services, such as Uber or Airbnb, for those willing to use them. Those who d

The Law of Demand

                                                          THE   LAW   OF   DEMAND The law of demand states that the demand for a commodity increases when its price decreases and it falls when its price rises, other things remaining constant. This is an empirical law, i.e., this law is based on observed facts and can be verified with new empirical data. As the law reveals, there is an inverse relationship between the price and quantity demanded. The law holds under the condition that “other things remain constant”.  “Other  things” include other determinants of demand, viz., consumers’ income, price of the substitutes and complements, taste and preferences of the consumer, etc. These factors remain constant only in the short run. In the long run they tend to change. The law of demand, therefore, hold only in the short run. The law of demand can be presented through a demand schedule. Demand Schedule is a series of prices placed in descending (or ascending) order and the cor

आरक्षण : देश के लिए वरदान या अभिशाप

आरक्षण : देश के लिए वरदान या अभिशाप आरक्षण उस प्रक्रिया का नाम है जिसमे भारत की सरकार द्वारा सरकारी संस्थानोँ मेँ कुछ पिछड़ी जातियो के लिए सीटेँ रोक ली जाती है।अर्थात उस स्थान पर केवल एक विशेष जाति का व्यक्ति ही काम कर सकता है।यह विशेष जातियाँ वह वर्ग है जिन्हे प्राचीन भारत मेँ निचली जाती का दर्जा दिया जाता था , और इन लोगो को उच्च वर्ग के नीचे उनके आदेशो पर ही जीवन बसर करना पड़ता था। जिस वजह से वे कभी अपना व अपने परिवार का उद्धार नहीँ कर पाते थे। भारत मेँ आरक्षण की शुरुआत ब्रिटिश राज मेँ ही कर दी गई थी। 1882 में हंटर कमीशन से शुरू हुई इस आरक्षण प्रणाली का 1932 में अंग्रेजों ने अपनी सत्ता का प्रयोग करते हुए एक सांप्रदायिक बंटवारे के तहत दलितों और अन्य धर्मों को बांटने के लिए किया था। महात्मा गांधी ने इसकी कड़ी मुखालफत की , लेकिन अंतत: वह इस मुद्दे पर अंबेडकर के साथ समझौते के लिए तैयार हो गए। आरक्षण की लड़ाई में संविधान सभा में एक वोट की कमी से आरक्षण प्रस्ताव पारित नही होने पर डॉ. अम्बेडकर के सामने SC/ST को आरक्षण देने संबंधी गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई थी , लेकिन आंबेडकर ने अपनी

डिजिटल इंडिया

                                    डिजिटल इंडिया 1 जुलाई 2015 प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा डिजिटल इंडिया प्रोजेक्ट की शुरुआत की गयी थी। देश के लोगों के बेहतर विकास और वृद्धि के लिये तथा रुपांतरित भारत के लिये ये एक प्रभावशाली योजना है। यह डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था (नॉलेज बेस्ड इकॉनमी) बनाने के लिए एक कार्यक्रम है। एक ऐसा कार्यक्रम है जिसके लिए सरकार ने 1,13,000 करोड़ का बजट रखा है। इस कार्यक्रम के तहत 2.5 लाख पंचायतों समेत छ: लाख गांवों को ब्रॉडबैंड से जोड़ने का लक्ष्य है और सरकार की योजना 2017 तक यह लक्ष्य पाने की है। अब तक इस योजना के तहत 55 हजार पंचायतें जोड़ी गई हैं। उद्देश्य डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के नौ प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं : 1. ब्रॉडबैंड हाइवेज-   ब्रॉडबैंड हाइवे निर्माण से अगले तीन सालों के भीतर देशभर के ढाई लाख पंचायतों को इससे जोड़ा जाएगा और लोगों को सार्वजनिक सेवाएं मुहैया करायी जायेंगी. 2. मोबाइल कनेक्टिविटी सभी के लिए - देश के 55,000 गांवों में अगले पांच वर्षों के भीतर मोबाइल संपर्क की सुविधा सुनिश्चित करने के लिए 20,000

भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय आर्थव्यवस्था 1.     भारत में पहली जनगणना की शुरुआत :-1872( लार्ड मेयो के काल में ) 2.     देश में नियमित जनगणना की शुरुआत :-   1881( लार्ड रिपन के काल में ) 3.     स्वतंत्र भारत की पहली जनगणना :-   1951 में 4.     जनसँख्या का महाविभाजक दशक :-   1911-21 5.     जनसँख्या का लघु विभाजक वर्ष :-   1951 6.     जनगणना की अवधि :-   प्रतिएक 10 वर्ष पर 7.     जनसँख्या का अध्ययन :-   डेमोग्राफी ( जनांकिकी ) 8.     2011 की जनसँख्या का क्रम :-   देश की 15 वी तथा स्वतंत्र भारत की 7 वी 9.     2011 की जनगणना का आदर्श वाक्य :- हमारी जनगणना हमारा भविष्य 10.   जनगणना का शुभंकर :- प्रगणक शिक्षिका 11.   प्रथम जनगणना कमिशनर :- डब्ल्यू प्लाडैन 12.   स्वतंत्र भारत के प्रथम जनगणना आयुक्त :-   डॉ सी चंद्रमोली 13.   पहली बार जाती आधारित जनगणना :-   1931 14.   विश्व जनगणना दिवस ;-  11 जुलाई 15.   कुल जनगणना l:-  121.05 करोड़ 16.   भारत में विश्व जनगणना का भाग :-17.